पुण्य प्रसून बाजपेयी
दफ़्अतन
अनुशील
संवेदना संसार उड़नतस्तरी Kailash शर्मा क्षितिजा ....संगीता स्वरुप ( गीत )दिगम्बर नासवा वन्दना आशा जोगळेकर परमजीत सिँह बाली राजपूत
अनुपमा पाठक वन्दना अवस्थी दुबे संतोष त्रिवेदी vijay सिंह M वर्मा आदि
अपूर्व जी इस बेहतरीन रचना की कुल टिप्पणी 14
अनुपमा पाठक वन्दना अवस्थी दुबे संतोष त्रिवेदी vijay सिंह M वर्मा आदि
अपूर्व जी इस बेहतरीन रचना की कुल टिप्पणी 14
आज, वक्त के इस व्यस्ततम जंक्शन पर
जबकि सबसे सर्द हो चले हैं
गुजरते कैलेंडर के आखिरी बचे डिब्बे
जहाँ पर सबसे तंग हो गयी हैं
धुंध भरे दिनों की गलियाँ
सबसे भारी हो चला है
हमारी थकी पीठों पर अंधेरी रातों का बोझ
और इन रातों के दामन मे
वियोग श्रंगार के सपनों का मीठा सावन नही है
इन जागती रातों की आँखों मे
हमारी नाकामयाबी की दास्तानों का बेतहाशा नमक घुला है
इन रातों के बदन पर दर्ज हैं इस साल के जख्म
वो साल
जो हमारे सीनों पर से किसी शताब्दी एक्सप्रेस सा
धड़धड़ाता गुजर गया है
और इससे पहले कि यह साल
आखिरी बूंदे निचोड़ लिये जाने के बाद
सस्ती शराब की खाली बोतल सा फेंक दिया जाय
कहीं लाइब्रेरी के उजाड़ पिछवाड़े मे,
हम शुक्रिया करते हैं इस साल का
कि जिसने हमें और ज्यादा
बेशर्म, जुबांदराज और खुदगर्ज बना दिया
और फिर भी हमें जिंदगी का वफ़ादार बनाये रखा
इस साल
हम शुक्रगुजार हैं उन प्रेमिकाओं के
जिन्होने किसी मुफ़लिस की शरीके-हयात बनना गवारा नही किया
हम शुक्रगुजार हैं उन नौकरियों के
जो इस साल भी गूलर का फूल बन कर रहीं
हम शुक्रगुजार हैं उन धोखेबाज दोस्तों के
जिन्होने हमें उनके बिना जीना सिखाया
हम शुक्रगुजार हैं जिंदगी के उन रंगीन मयखानों के
जहाँ से हर बार हम धक्के मार के निकाले गये
हम शुक्रगुजार हैं उन क्षणजीवी सपनों का
जिनकी पतंग की डोर हमारे हाथ रही
मगर जिन्हे दूसरों की छतों पर ही लूट लिया गया
उन तबील अंधेरी रातों का शुक्रिया
जिन्होने हमें अपने सीने मे छुपाये रखा
और कोई सवाल नही पूछा
उन उम्रदराज सड़कों का शुक्रिया
जिन्होने अपने आँचल मे हमारी आवारगी को पनाह दी
और हमारी नाकामयाबी के किस्से नही छेड़े !
और वक्त के इस मुकाम पर
जहाँ उदास कोहरे ने किसी कंबल की तरह
हमको कस कर लपेट रखा है
हम खुश हैं
कि इस साल ने हमें सिखाया
कि जरूरतों के पूरा हुये बिना भी खुश हुआ जा सकता है
कि फ़टी जेबों के बावजूद
सिर्फ़ नमकीन खुशगवार सपनों के सहारे जिंदा रहा जा सकता है
कि जब कोई भी हमें न करे प्यार
तब भी प्यार की उम्मीद के सहारे जिया जा सकता है।
और इससे पहले कि यह साल
पुराने अखबार की तरह रद्दी मे तोल दिया जाये,
हम इसमें से चंद खुशनुमा पलों की कटिंग चुरा कर रख लें
और शुकराना करें कि
खैरियत है कि उदार संगीनों ने
हमारे सीनों से लहू नही मांगा,
खैरियत है जहरीली हवाओं ने
हमारी साँसों को सिर्फ़ चूम कर छोड़ दिया,
खैरियत है कि मँहगी कारों का रास्ता
हमारे सीनों से हो कर नही गुजरा,
खैरियत है कि भयभीत सत्ता ने हमें
राजद्रोही बता कर हमारा शिकार नही किया,
खैरियत है कि कुपोषित फ़्लाईओवरों के धराशायी होते वक्त
उनके नीचे सोने वालों के बीच हम नही थे,
खैरियत है कि जो ट्रेनें लड़ीं
हम उनकी टिकट की कतार से वापस लौटा दिये गये थे,
खैरियत है कि दंगाइयों ने इस साल जो घर जलाये
उनमे हमारा घर शामिल नही था,
खैरियत है कि यह साल भी खैर से कट गया
और हमारी कमजोरी, खुदगर्जी, लाचारी सलामत रही।
मगर हमें अफ़सोस है
उन सबके लिये
जिन्हे अपनी ख्वाहिशों के खेमे उखाड़ने की मोहलत नही मिली
और यह साल जिन्हे भूखे अजगर की तरह निगल गया,
और इससे पहले कि यह साल
इस सदी के जिस्म पर किसी पके फ़फ़ोले सा फूटे
आओ हम चुप रह कर कुछ देर
जमीन के उन बदकिस्मत बेटों के लिये मातम करें
जिनका बेरहम वक्त ने खामोशी से शिकार कर लिया।
आओ, इससे पहले कि इस साल की आखिरी साँसें टूटे
इससे पहले कि उसे ले जाया जाय
इतिहास की जंग लगी पोस्टमार्टम टेबल पर
हम इस साल का स्यापा करें
जिसने कि हमारी ख्वाहिशों को, सपनों को बाकी रखा
जिसने हमें जिंदा रखा
और खुद दम तोड़ने से पहले
अगले साल की गोद के हवाले कर दिया
आओ हम कैलेंडर बदलने से पहले
दो मिनट का मौन रखें!!
विक्रम जी की इस रचना में पहली वार कोई टिप्पणी नहीं मिली ,दूसरी वार एक ,तीसरी बार इसी रचना को पोस्ट किया ३१, वह भी तब जब दूसरो को टिप्पणी की.
वैसे विक्रम जी लेखन की निरंतरता को नहीं बनाए रखते,पुरानी पोस्टो को दुबारा पोस्ट कर देते हैं,पर जब भी नई रचना आती है,कुछ नया सोचने के लिए मजबूर कर देते है .तथा दूसरो की रचना में टिप्पणी भी कम करते है, कारण वह ही जाने.
वह सुनयना थी........
वह सुनयना थी
कभी चोरी-चोरी मेरे कमरे मे आती
नटखट बदमाश
मेरी पेन्सिले़ उठा ले जाती
और दीवाल के पास बैठकर
अपनी नन्ही उगलियों से
भीती में चित्र बनाती
अनगिनत-अनसमझ, कभी रोती कभी गाती
वह फिर आयी थी मेरे कमरे में
मुझे देख सकुचाई थी
नव-पल्लव सी अपार शोभा लिये
पलक संपुटो में लाज को संजोये
कभी चोरी-चोरी मेरे कमरे मे आती
नटखट बदमाश
मेरी पेन्सिले़ उठा ले जाती
और दीवाल के पास बैठकर
अपनी नन्ही उगलियों से
भीती में चित्र बनाती
अनगिनत-अनसमझ, कभी रोती कभी गाती
वह फिर आयी थी मेरे कमरे में
मुझे देख सकुचाई थी
नव-पल्लव सी अपार शोभा लिये
पलक संपुटो में लाज को संजोये
सुहाग के वस्त्रों में सजी
उषा की पहली किरण की तरह
कॉप रही थी
जाने से पहले मांगनें आयी थी ,वात्सल्य भरा प्यार
जो अभी तक मुझसे पा रही थी
वह फिर आयी थी मेरे कमरे में
दबे पाँव
डरी सहमी सी
उस कबूतरी की तरह
कॉप रही थी
जाने से पहले मांगनें आयी थी ,वात्सल्य भरा प्यार
जो अभी तक मुझसे पा रही थी
वह फिर आयी थी मेरे कमरे में
दबे पाँव
डरी सहमी सी
उस कबूतरी की तरह
जिसके कपोत को बहेलिये ने मार डाला था
संरक्षण विहीन
भयभीत मृगी के समान
मेरे आगोश में समां गयी थी
सर में पा ,मेरा ममतामईं हाथ
आँसुओं के शैलाब से
मेरा वक्षस्थल भिगा गयी थी
सफेद वस्त्रों में उसे देख ,मैं समझ गया था
अग्नि चिता में
वह अपना
सिंदूर लुटा आयी थी
वह फिर आयी थी मेरे कमरे में
नहीं इस बार दरवाजे पर
दबे पाँव नहीं
कोई आहट नहीं
कोई आँसू नहीं
सफेद चादर से ढकी
मेरे ड्योढी में पडी थी
मैं आतंकित सा, काँपते हाथों से
उसके सर से चादर हटाया था
चेहरे पे अंकित थे वे चिन्ह
जो उसने, वासना के
सडे-गले हाथो से पाया था
मैने देखा
उसकी आँखों में शिकायत नहीं,स्वीकृति थी
जैसे वह मौन पड़ी कह रही हो
हे पुरूष, तुम हमें
माँ
बेटी
बहन
बीबी
विधवा
और वेश्या बनाते हो
अबला नाम भी तेरा दिया हैं
शायद इसीलिए
अपने को समझ कर सबल
रात के अँधेरे में,रिश्तो को भूल कर
भूखे भेडिये की तरह
मेरे इस जिस्म को, नोच-नोच खाते हो
क्या कहाँ ,शिक़ायत और तुझसे
पगले, शायद तू भूलता है
मैने वासना पूर्ति की साधन ही नहीं
तेरी जननी भी हूँ
और तेरी संतुष्ति,मेरी पूर्णता की निशानी हैं
मैं सहमा सा पीछे हट गया
उसकी आँखों में बसे इस सच को,मैं नहीं सह सका
और वापस आ गया ,अपने कमरे में
शायद मैं फिर करूँगा इंतजार
किसी सुनयना का
वह सुनयना थी
और अपने धीर जी ,सच कहे जो लिखते है ,खुद भी उसे पढते है या नहीं कह नहीं सकती ,पर उनकी रचना को गीत ,कविता गजल की श्रेणी में, मै तो नहीं रख सकती . पर वह दूसरी को टिपियाते बहुत है,और लोग उन्हें,यह सब ब्लॉग की रेटिग बढाने के अलावा क्या है,साहित्य सेवा कहना क्यां उचित होगा, पहले भी कह चुकी हूँ,जो आप के लेखन को नहीं पढते ,आप भी उन्हें न पढे,पर सही व् खराब रचना की अपनी टिप्पणी में उचित व्याख्या तो करें। धीर जी ने अभी अपनी रचना का पोस्टमार्टम किया है,यही पूर्व में कर देते व् अन्य रचनाओ में भी ,उनकी नई रचना कवि जैसी बात अन्य रचनाओ में देखने को नहीं मिला आशा है आगे भी इस तरह की रचनाये ही उनके ब्लॉग में मिलेगी .
कवि,...
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhVNo-QiHZIpMvX7fmaqrE2aQulLPKMj5t3byGJHa0efyBuJIxXJ1W37TBFwleHYj2XD7PRw6dizO6g2IDx4Ft9NUrAoz8sV8SYmrgQVMqvPe3VMQyZlgaMS6O7_BEpMEdrVpBPO-eBAmU/s400/szo0432.jpg)
कवि
क्या अपनी, परिभाषा लिख दूँ
क्या अपनी,अभिलाषा लिख दूँ
शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ
तख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ
केंद्र बिंदु, मष्तिक है मेरा
नये विषय का , लगता फेरा
लिखता जो , मन मेरा करता
मेरी कलम से , कायर डरता
क्रोधित होकर कभी न लिखता
सदा सहज बन कर ही रहता
विरह वेदना ,पर भी लिखता
प्यार भरी भी , रचना करता
कभी नयन को,रक्तिम करता
कभी मौन हूँ, सब को करता
कभी वीरता के , गुण गाता
दुर्गुण को भी , दूर भगाता
मन मेरा है, उड़ता रहता
अहंकार से , हरदम लड़ता
गुनी जनीं का ,आदर करता
सारा जग,कवि मुझको कहता
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgzkbQ6tBLmnqCvu0gCemma22QncAID1NMNk2fHeE7XPh0PCEkbhj72dn-9Gt4yO7IXfegcaGmcvIxD81fRWMlQmJa_OJWFoLSIVmlcy2uuy0VKwE25mp_KhZhxWVzXAc21WfSNxE1L_do/s400/0035.jpg)
इन आसुओं कीमत तुम न, समझ सकोगी
मुझसे यूं दूर रहकर,तुम भी न जी सकोगी
तडपते थे प्यार में हम इक दूसरे के ऐसे
वो दिन भुला के यारा, जाओगे बोलो कैसे
वादे किये थे हमने,होगे जुदा नहीं हम
कैसे सहोगी जाना, मुझसे जुदाई का गम
मुझको यूँ करके तन्हा तुम जा कहाँ रही हो
जानेमन सोच लेना, तुम प्यार खो रही हो
बदनाम रास्तो में भला क्यां तुम्हे मिलेगा
मंजिल मिलेगी फिर भी,यह प्यार न मिलेगा
मुझे यूं रुला के तुमको कैसे,सुकूँ मिलेगा
तुझे हर खुशी में अपनें,मेरा दर्द ही मिलेगा
तेरी याद तो हमेशा मेरे साथ ही रहेगी
गुमनाम ''धीर'' होगा,ये पीर तुम सहोगी
इसके पहले यही रचना कुछ इस तरह थी ,खूब तारीफ मिली देखे -
मेरी आँसुओं की कीमत तुम न चुका सकोगी,
मेरे दिल से दूर रहकर तुम भी जी न सकोगी!
तडपते थे हम एक दिन अपने प्यार में कभी,
मुझको भुला के तुम वह दिन न भुला सकोगी!
खाई थी कसमे निभाने की न होगें जुदा कभी,
मुझको जुदा करके तुम जुदाई न सह सकोगी!
मुझको छोड़ कर यूँ तन्हा तुम चल दिए कहाँ,
मेरी न सही तो दुसरे के भी तुम न हो सकोगी!
उन रास्तों पर न जाओ जो कभी बदनाम रहें है,
तुम्हे मंजिल तो मिलेगी पर मुझे न मिल सकोगी!
तुमने बहुत तडपाया मुझको संकू तुमको न मिलेगा,
जो जख्म दिया है मुझको उन्हें तुम भर न सकोगी!
अपने ही वीरानो में हम हमेंशा के लिए खो जायेगें,
चाहे जितना करो तलाश तुम "धीर" को पा न सकोगी!
आशा है अन्यथा न लेते हुए आप सभी गुनी जन मेरी बातो पर ध्यान देने का कष्ट करेगे.
नंदित्ता
नदित्ता (या नंदिता)... पहली पोस्ट पर बहुत ही परिपक्व पोस्ट ... मुझे लगता है ब्लोगिंग एक माध्यम है अपने मन कों बांटने का ... जो आपको पसंद है वो लिखने का अगर दूसरे पसंद करें तो ठीक नहीं तो करें तो भी ठीक ... हाँ अपना काम करते जाएँ ये जरूरी लगता है ...
जवाब देंहटाएंबाकी टिप्पणियाँ तो प्रतितिप्पनियों का ही नतीजा होती हैं ... पर कभी कभी और अच्छा लिखने कों प्रेरित भी करती हैं ... आपने खुद ही माना है की अच्छा लिखने वाले भी बहुत हैं ... तो क्यों न उन्हें पढ़ा जाए ऊर्जा व्यर्थ की बातों में क्यों लगाईं जाए ...
वैसे आपने मुझे भी अच्छा ब्लोगेर माना इसका शुक्रिया तो जरूर करूँगा ...
मै भी आप की बात से सहमत हूँ ,
हटाएंनंदिता जी ,ब्लाग जगत बना ही है अपनी बात कहने के लिए,कोई किस तरीके से अपनी बात रखता है और किसे यह बात पसंद आती है या किसे नही ,यह चर्चा का विषय नहीं ,अच्छे साहित्य से बाजार भरे है,यहाँ अपने मन की बात रखने दे ,बस भाव ,व इरादे अच्छे हो ,धीरेन्द्र जी अपनी बात अपने तरीके से रख रहे हैं, इसमें बुराई क्या है, टिप्पणी करते है पाते भी है ,मुझे वक्त ही नही मिलता,इससे ज्यादा ब्लागों में नहीं जा पाता हूँ,न ही ज्यादा लेखन कार्य नही कर पाता हूँ क्यों की कोई साहित्यकार नहीं हूँ.
जवाब देंहटाएंअरे विक्रम जी ,लगता है आप नाराज हो गये. मुझे आप की नई रचनाओ का इंतज़ार रहता है,अभी आप ने कहा ब्लॉग जगत अपनी भावनाओं को व्यक्त करनें का मंच है, मैने भी अपने मन की बात कह दी ,अपनी पहली पोस्ट पर आपसे बधाई की उम्मीद रखती थी?
जवाब देंहटाएंमाफी चाहता हूँ, ब्लॉग जगत में आप का स्वागत है,शुभकामनाये,आप के आदेशानुसार नई रचना भी शीघ्र डालने का प्रयास करूगां जब कुछ नही लिख पाता तो पुरानी पोस्ट को पोस्ट कर ब्लॉग जगत से जुड़े रहने का प्रयास करता हूँ . जब से ब्लॉग, facebook,twitter, की सुविधा हो गई, अपनी बात रखने का सरल माध्यम मिल गया है.कितने लोग जो एक दूसरे से अंजान थे, उन्हें आपस में जुड़ने, समझने का मंच मिल गया, इसका सार्थक प्रयोग,या गलत प्रयोग हमारी मानसिकता पर निर्भर करता है.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई और स्वागत आपका.
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत अभिव्यक्ति का अच्छा और सशक्त माध्यम है.
यहाँ तप भी है,यज्ञ भी है और दान भी.
सीखने के लिए बहुत कुछ है यहाँ.
'एक नजर मेरी बात पर' आपके नजरिये
से परिचय हुआ.
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
आभार.
बहुत बेबाकी से आप अपनी बातें सबके सामने रखती हैं यह अच्छा लगा। ब्लाग की दुनिया में आपका स्वागत है। मेरी पोस्ट पर आईं , आभार!
जवाब देंहटाएंनंदिता जी एक नजर मेरी बात से आप ने शुभारम्भ किया अच्छी समीक्षा रही आइये लिखिए स्वागत है आप का हिंदी साहित्य जगत को अपना मुकाम पाना है आइये सब मिल कर कुछ न कुछ रचें योगदान दें अधिक टीका टिप्पणी पर न जाकर मनोबल दें नए लोग आयें गुणवत्ता जिंतना बन सके बनाने की कोशिश हो अच्छा है ..बहुत से अच्छे लोग हैं ब्लॉग जगत में लेकिन सब बराबर तो नहीं हो सकते न ?
जवाब देंहटाएंप्रतापगढ़ साहित्य मंच में आप का स्वागत है हमारे अन्य चिट्ठे भी अच्छे लगे तो पढ़ें ..
भ्रमर ५
नंदिताजी....आप तक पहुंचा हूँ,वह भी आपके बगैर टिपियाये हुए.समर्थकों की सूची से आप तक आया और यह ब्लॉगिंग की सचाई है या यूँ कहिये यह विधा ही ऐसी है कि आप किसी को पढेंगे तो आप पढ़े जायेंगे.हाँ ,आप अभी नई हैं इसलिए सारी बातें जल्द ही समझ जाएँगी.आपने जिन कविताओं का ज़िक्र किया है और शोधपरक आलेख तैयार किया है,वह काबिले-गौर है.कविता अच्छी है पर आप कहीं आती-जाती नहीं तो बदले वाली टीपें तो मिलेंगी ही नहीं,पढ़ने वाली भी नहीं.एक छोटी-सी सलाह है,छोटा-सा दायरा बनाएँ,मनपसंद ब्लॉग्स का और उनमें मन से टीपें फिर देखिये आपको सारगर्भित टीपें भी मिलेंगी.लेकिन टीपों को लेकर ज़्यादा सेंटी मत होइए,आप सार्थक लिखती रहें,आपको पढ़ने वाले भी मिलेंगे.
जवाब देंहटाएंबहरहाल,पहली पोस्ट के लिए बधाई और देखो मैंने बिना किसी बदले के यह टीप की है पर उम्मीद करता हूँ कि संवाद कायम रहेगा....दोतरफा !
बहुत बढ़िया बेबाक विचारणीय प्रस्तुति के साथ सार्थक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंआपकी अभिव्यक्ति में बहादुरी है और काफी हद तक विनम्रता भी....
जवाब देंहटाएंबधाई कबूल करें.....
आपके विचारों का स्वागत है.
टिप्पणियां दो तरफ़ा खेल है इसमें कोई शक नहीं.....कुछ अपवादों को छोड़ कर......
हां मगर टिप्पणियों से पता चल जाता है की पाठक को रचना कैसी लगी....रस्म आदायगी की है या वाकई पसंद आई है......
जैसे पढते-पढते के मनोज पटेल जी ....कहीं टिप्पणियां नहीं करते मगर जिन्हें भाता है वो उन्हें पढते ही हैं.....मै नियमित पाठक हूँ उनकी.
मानव स्वाभाव है नंदिता जी....तारीफ़ सभी को अच्छी लगती है और हम मौके खोजते भी हैं पात्र बनने के......
:-)
आपकी अगली पोस्ट का इन्तेज़ार रहेगा.....
अनु
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
जवाब देंहटाएंचर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
ब्लाग जगत में आकर
जवाब देंहटाएंकुछ बदल जायेगा
पुराना छोड़ कुछ
नया लायेगा
आदमी मैं वोही तो हूँ
जो रोज देखती है
वो पडो़स में अखबार में
टी वी में बाजार में ।
पहली पोस्ट के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत में मैं संजय भास्कर आपका स्वागत करता हूँ
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रथम पोस्ट के साथ .. उत्कृष्ट विचारों का स्वागत है ... बिल्कुल सही कहा है आपने .. आभार ।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रथम पोस्ट बहुत सच्चाई भी है पर सभी अपने मनोभावों को व्यक्त करने के लिये स्वतंत्र हैं. ब्लॉग जगत में स्वागत और शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंआपका स्वागत है ... मेरी ओर से भी आपको हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंapka dhang bahut achcha laga.....
जवाब देंहटाएंस्वागत है आपका ....
जवाब देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज के ब्लॉग बुलेटिन पर |
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